Tuesday, April 27, 2010

फ़रियाद खुदा से ...

बहुत रोये हैं, अब तो कोई हँसने के बहाने दे दे,
खुदा कोई जीने की नहीं तो, मरने की वजह दे दे |

उनके गम का सबब तो बता दिया तूने,
अब उसको मिटाने का कोई तो इल्म दे दे |

वो कहते हैं हमसे कि, मत करो इन्तेज़ार मेरा,
कैसे कहें उससे की वो, उन्हें भूलने की वजह दे दे |

अकेले जीते हुए खुदा, तूने कोई खुशी नहीं दी,
उनको खुशियों से मिला दें, ऐसी कोई रहगुजर दे दे  |

उनका यार खफ़ा है उनसे, वो माना ले उसे,
ऐ खुदा, उनको इश्क में डूबा कोई 'नूर' दे दे 

सच है बहुत जला हूँ, हिज्र की आग मे अब तक,
उसको वसले-यार और मुझे कुछ कतरा-ऐ-शबनम दे दे | 

[इल्म = ज्ञान ]
[हिज्र = जुदाई ]
[वसले-यार = प्रेमी से मिलन]

1 comments :

Sandesh Dixit said...

bahut achche bhav.....par gazal se koso door !!!!Atleast follow one rule ....

You first start writing in poem style....sach kehta hu agar ye kavita hoti to kafi achchi hoti !!!!

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