Thursday, April 29, 2010

तुम ही तुम हो

खिला दी है जिसने ये फिज़ा, वो गुनगुनाती धूप तुम हो,
हवा महकी भीनी भीनी सी, गुलाबों की वो खुशबू तुम ही  हो |

चाहे तुम आओ या ना आओ जिंदगी में मेरी,
कोई गिला नहीं तुमसे, तब भी बहार-ऐ-जिंदगी तुम ही हो |

क्या शिकायत होगी मुझ दीवाने को हिज्र के इस मौसम से,
तेरा इश्क है मुझ में, इस दिल की धड़कन तुम ही हो |

वो जो सोचते हैं कि तुम दूर हो मुझसे,
कैसे समझ पायेगें कि तसुव्वर में हमेशा तुम ही हो |

दिल के गुलशन में आई नहीं खिज़ा तुम्हारे बाद,
दिल में हमेशा बसने वाली बहार तुम ही हो |

क्या हुआ जो साथ नहीं, और हाथों में हाथ नहीं,
मैं दिल हूँ तुम्हारा, इस जिस्म की जान तुम ही हो |

मिलाएगा खुदा दिलों को, तू इतनी फिकरमंद क्यूँ है,
तेरी सांसें कीमती नहीं तेरे लिए बस, किसी की दिलो-जान तुम ही हो |

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