Friday, April 23, 2010

इश्क के मायने

कभी ग़ालिब ने बोला,कभी कहा मीर ने,
कभी आसां नहीं होते ये रास्ते इश्क के |

मिली है लोगों को मंजिल यहाँ,
पर जले हैं, दिल भी बहुतों के |

जब तक नहीं की थी, मोहब्बत हमने,
पता नहीं था होंगें इतने रंग प्यार के |

तुमसे मिलने के बाद जाना मैंने,
कुछ अलग भी होतें हैं, रूप खुदा के |

तुझे देखता हूँ, तो समझ आता है,
ऐसे होतें हैं चहरे उम्मीदों-आशाओं के |

तुझसे दूर है क्यूँ, ये क्या पता मुझे,
बताता हमें, कहाँ कोशिश की उस ने |

रातें सुनसान, दिन बेजान से हैं निकलते,
छीने हों किसी ने इनके चाँद-सूरज जैसे |

क्यूँ जीना हैं ऐसे, ये क्या जिंदगी है,
जब साँसों के धागे यूँ,अलग हैं तेरी साँसों से|

कौन जाने, तेरे दिल का हाल क्या होगा,
ज़ख्म भर जाएँ तेरे, गम हो तेरे, मेरे हिस्से |

0 comments :

Post a Comment