Monday, April 19, 2010

इश्क में ये होता है

जिंदगी यूँ ही चल रही है,
ना चैन ना ही आराम है |

बरस रहे हैं बेशुमार वक़्त के अंगारे,
जल रहा है दिल, जाने कहाँ शीतलता है |

रोता है दिल ही दिल में ही,
यारों के संग सिर्फ चेहरा ही हँसता है |

दिल छलनी है, ज़ख़्मी है इसका ,
इसको यूँ शब्दों के शर लगे हैं |

बस उसी से है जान पहचान,
खुद से तो ये कब का अनजान है |

दर्द इसको कहाँ होते हैं अपने,
किसी का गम इसको ग़मगीन करता है |

कहा था 'नूर' ना करना इश्क कभी,
दूसरे का दर्द इसमें अपना होता है |

0 comments :

Post a Comment