Sunday, September 19, 2010

तेरे ख्यालों में

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समंदर की ताज तुम लहरें, कैसे तुम्हारा नसीब ना होगा
तैरोगी सरहदे समंदर, साहिल पे आके तुमको टूटना होगा |

मुझे दर्द ओ गम है, डर है तुमसे जुदाई का
डरता ना हो, ऐसा इस जहान में कोई इंसान ना होगा |

यूँ तो दिखलाता है बखूबी, कि तू पत्थर दिल है,
माने गर तेरी बात, सीने में धड़कन जैसा कुछ ना होगा |

पर उसमें भी है धड़कन, जो दिल तेरे सीने में हैं,
अब ज़ज्बात भरे हों जिसमें बेंतेहाँ, वो पत्थर ना होगा |

Saturday, September 18, 2010

कॉलेज का ज़माना

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वो भी क्या मस्ती का टाइम साला, क्या गफलत भरा ज़माना था
लेक्चरर को तंग कंरना तो बस, मस्ती का एक बहाना था

लड्डू बॉस,मिलिट्री ग्राउंड, रैगिग का शैशन, था इक बहाना,
वहीँ से बस एक जय-वीरू टाइप की दोस्ती को शुरू होना था |

कौशिक बॉस ने बहुत उड़ाया था, चील कौव्वे और कबूतर बना कर, 
अब ट्रिपल एस की क्लास में किसी को कुत्ता बिल्ली तो बनाना था |

भाई लेकिन यहाँ जान की परवाह तो सबको ही थी अपनी,
सो नो रिस्क,गोदारा की क्लास में सबको चुप बैठ जाना था

Thursday, September 9, 2010

तुझसे मोहब्बत है

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यूँ तो क्या था मैं, सिर्फ ज़र्रा ऐ ज़मीन,
खुद से पहचान, तेरे प्यार में खोकर किया हूँ |

सावन कितने आये जिंदगी में, रहा सहरा में,
तेरी मोहब्बत के सहारे, खुद को तर किया हूँ |

यूँ ठुकराया मुझको इस जहान ने, गम नहीं,
एक तेरे आगोशे मोहब्बत में, बसर किया हूँ |

सब दुःख तकलीफ,गम से तू दूर रहे,
ये दुआ मांगता हूँ,हर पल यही चाहत किया हूँ |

तेरे चेहरे पर हंसी खेलती रहे हमेशा,
खुद को फना, तेरी हंसी के दीदार पर किया हूँ |

Sunday, September 5, 2010

मंज़र-ऐ-जिंदगी

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मेरे इर्द गिर्द, ये मेरे आस पास
यूँ अचानक क्यूँ उड़ने लगी ख़ाक ख़ाक |

ये समां तो है सावन का फिर भी,
दिल क्यूँ जलने लगा, होने लगा राख राख |

मैंने तो बस इश्क किया, नहीं जुर्म कोई
फिर हर गली क्यूँ होने लगी मेरी बात बात |