Wednesday, March 31, 2010

अंतर्मन द्वंद : एक पंथी, एक प्रेमी और एक मित्र

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कर्म रथ है चलता रहता,
कर्म पथ है बदलता रहता,
ऐ पंथी तू काहे को घबराता |

समय चक्र यूँ चलता रहता,
सुख दुःख आता जाता रहता,
ऐ पंथी तू काहे को घबराता |

Sunday, March 28, 2010

यूँ वो मेरा दोस्त बना

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यूँ वो मेरा दोस्त बना |
चलते चलते यूँ  हमसफ़र बना,
यूँ वो मेरा दोस्त बना |

कभी वो मेरा राज़दार हुआ न हुआ |
ज़िन्दगी भर के लिए, हमराज़ बना,
यूँ वो मेरा दोस्त बना |

Friday, March 26, 2010

जीना यूँ इश्क में

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कोई है जो मेरा वहां इंतज़ार करता है
मेरे नाम को साँसों में पिरोया करता है |

फासला ये जो हैं हमारे बीच का ,
यही है जो मोहब्बत में रंग भरा करता है |

Thursday, March 25, 2010

यूँ किसको मोहब्बत करते हो

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खुदा मान उसको यूँ सजदा करते हो,
सूनी ज़िन्दगी में किसे ढूँढा करते हो |

बस यादों के साए हैं जहाँ,
तुम उनमें घूमा करते हो |

कोई राज़ नहीं छुपा है इन आँखों में,
तुम उनमें क्या देखा करते हो |

Wednesday, March 24, 2010

ज़ज्बा ऐ इश्क

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यूँ तो मिली सौ बेचैनियाँ , सौ राहतें ,
एक बस तू ही नहीं जिसकी हैं चाहतें |

हो दिल के करीब इतने तुम,
फिर भी क्यों लगते हैं फासलें |

तेरी जुदाई में लम्हे , दिन,
दिन, महीने, साल हैं बनते  |

Sunday, March 21, 2010

अब प्यार है तो है

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वो नहीं मेरा, मगर उससे मोहब्बत है, तो है,
ये अगर रस्मों रिवाजों से बगावत है, तो है |

सच को मैंने सच कहा,जब कह दिया तो कह दिया,
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है, तो है |

दोस्त बनकर दुश्मनों सा,वो सताता है मुझे,
फिर भी उस जालिम पे मरना अपनी फितरत है, तो है |

कौन इश्क समझ पाया

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Well again, this is Sandesh Boss's Day.
we were just talking about our creation, I was telling him some of my old poems, them he wrote, following lines on me.
likhte likhe wo yun gazal hi ban gayi ....
Here I am sharing what he said about me.

नूर तुम जलाते रहे जिंदगी को यूँ ही,
ज़र्रे की तज्जली को वो एक शख्श समझ न पाया | [तज्जली = रौशनी]

अब तो ख्वाइश की वो रहे खुश हमेशा
कभी करेंगे हिसाब,की इश्क में क्या खोया.क्या पाया |

अपनी ख़ुशी को बेच दिया साकी के एक इशारे पर,
जाने इस रिंद को अब कौनसा नशा छाया | [रिंद = शराबी]

तू गर हमसफ़र भी होता तो क्या होता

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Well This is Sandesh Boss's Creation,
My College Senior, My Dronacharya, My best Buddy.
I am gr8 fan of him, I don't how, but He wrote my heart.

वो अगर आज ये ना लिखते, तो शायद कुछ सालों बाद यही poem mere Blog par होती, meri kavita ke रूप में, hehehehehehe.
Boss you have written a master piece, Hats off to you.

आतिश-ऐ-इश्क में जलना था मुझे अकेला,तू गर साथ भी होता तो क्या होता
जब मरना ही था मुझे प्यासा, तो तू समुंदर भी होता तो क्या होता

दिल से निकले पाक-ऐ-अश्क को भी तुने जो बहाना माना
यकीं तुझे मुझ पर इतना तो फिर वो लहू भी होता तो क्या होता

Gain a pain, and walk in the Rain

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I always heard, when
they say we love to walk in rain.

I asked myself, why they say so,
but all my efforts were in vain.

today when I lost someone ,
when I am in so much pain.

understood, that was not a tale,
or a cakewalk,to walk in the rain .

Saturday, March 20, 2010

उल्फ़त की उलझन

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लड़ रहा हूँ ना जाने किस से, जब रणभूमि है सुनसान,
कुछ भी नहीं वहाँ, बस है एक खाली मैदान |

कोई नहीं है, कोई जो दे शाह या मात,
फिर क्यों लगे है, युद्ध यहाँ चढ़ा है परवान |

पूछूं किस से, मेरे दिल में भी कुछ सवाल हैं,
जिन्होंने मचाया है, मेरे तसूव्वर में तूफान |

कौन जाने कौन है साथ, कौन छोड़ देगा साथ,
उनके जाने का डर है साथ, चाहे मान ना मान |

Friday, March 19, 2010

यूँ मोहब्बत हो गयी

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जुम्मा जुम्मा चार दिन की दोस्ती गहरी हो गयी,
वो कहते हैं की, हमें उनकी आदत हो गयी |

वो जाएज़ा लेते हैं मोहब्बत का वक़्त से,
ना जाने, वक़्त और मोहब्बत में कब से यारी हो गयी |

इश्क़ में बसता है खुदा, कैसे हो जाएगा वो गुनाह,
ये समझाते हुए हमको, सुबह से शाम हो गयी |

Thursday, March 18, 2010

What a great Sunday

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life goes day by day,
today my life went away,
What a Great Sunday.

Today I have clue,
Which is closed, that is my way,
What a Great Sunday.

Wednesday, March 17, 2010

उन्होंने गलत समझा कोई बात नहीं

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उन्होंने अपना समझा ना समझा कोई बात नहीं ,
सही ना समझ के गलत ही समझा कोई बात नहीं |

वो हमारे रूहे जिस्म हुए तो क्या,
उन्होंने तो ज़र्रा ज़मीन का समझा कोई बात नहीं |

मैं उनके लिए खुदी को भुलाए बैठा हूँ,
उन्होंने हर बात का हिसाब रखा कोई बात नहीं |

Tuesday, March 16, 2010

ये कहानी अधूरी छोड़े जा रहा हूँ

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हर उम्मीद का दामन छोड़े जा रहा हूँ
खुद अपना दिल यूँ तोड़े जा रहा हूँ |

दोस्ती और वफ़ा पे करके भरोसा,
खुद का भरम तोड़े जा रहा हूँ |

रहीम से सुना था मैंने , रिश्ते कच्ची डोर हैं,
खिचीं हुई वो डोरें, अब ढीली छोड़े जा रहा हूँ |

क्यूँ इतनी मोहब्बत है

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आँसू से धुलते काजल से,
अब तो तकिये भी हो चले काले से |
तेरी याद में जीती हूँ हर पल,
लोगो क्यूँ समझे हम हैं परेसां से |

गमगीन है कोई मेरे गम से,
दर्द मुझे, आँसू क्यूँ निकलते उसकी आँखों से |
बोल ना पाई, एहसास के दो बोल उससे,
तेरी मोहब्बत में डूबी हूँ ऐसे |

ये खामोशी और दूरियां

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ना रहो चुप तुम, यूँ ही चुप रहना अपनों का, कहर होता है,
दुश्मनों की साज़िश और दोस्तों की चुप्पी में ज़हर होता है |

साथ नहीं हो तुम तो क्या 'नूर', तुम्हारा नज़ारा तो नज़र होता है |
सदायें नहीं आती कानों तक, पर उनकी दुआओं में वो ही असर होता है |

Monday, March 15, 2010

यादों के फूल

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Well never before, I wrote description of the inspiration, but I guess, this time I owe someone for this poem. It was just like that I saw book in hand of my fellow traveler when I was returning form Chennai, after my interview.
My eyes got stuck on that book, a flatten rose and pair of hands.
Then I went back in time to find what my friends used to tell me.
No one gave me rose to keep like that :), but I today I could sense the feeling they were having that moments.
At last I m so thankful to you Miss Co-traveler, that you help me to feel that feeling, which was next to impossible, if i were not seeing your book and flatten Rose.
This poem is dedicated to you and all, who respect the people who love 'em.

यादों के फूल
------------------
आज मैं फिर पुराने पलों से मिला,
किताब में रखा गुलाब फिर से खिला |

Saturday, March 13, 2010

सच्चा दिलासा

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माना की ज़िंदगी में गमों का साया है,
हर घड़ी हर वक़्त नया तूफान आया है,
पर हर तूफान के बाद,
मैने खुद को निखरा पाया है |

ऐसा नहीं है की दर्द नहीं हुआ मुझे,
हर कदम मुश्किलों ने बहुत रगड़ा है मुझे,
पर हर मुश्किल के बाद,
मैने खुद को बेहतर इंसान पाया है |

हद ही कर दी

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मैने माँगा था खुदा से साथ तेरा, उसने कौनसी मेहरबानी कर दी,
अभी तेरी मोहब्बत ही कहाँ दी, पर जुदाई मेरे नसीब कर दी |

तू तो एक नेक इंसान था, तूने अपनी ज़िंदगी उसके नाम कर दी,
पर कौन ये बेवफा निकला, किसने बेवफ़ाई से तेरी ये हालत कर दी |

मैं भी ना जाने कहाँ था, खुदा ने ये तो नाइंसाफी कर दी,
भेजना था तेरी ज़िंदगी में पहले, पर उसने भी देर कर दी |

चलो अब ना ही सही

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जिस राह पे हम चल पड़े, ना गलत, वो ना ही सही,
उस रहगुजर पर कोई मोड़ नहीं, ना ही सही |

तुम और मैं राधा कृष्ण ही सही,
प्यार था, पर मिल ना सके, अब ना ही सही |

सौ फरियादें मांगी हमने सावन की,
एक बूँद ना पड़ी, बारिश की, चलो को बात नहीं |

Wednesday, March 10, 2010

आपका साथ आपकी यादें

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इस गुजरते वक़्त के साथ, चले जा रहे लम्हों के साथ,
रहगुजर ऐ जिंदगी पे हम चल रहे हैं साथ साथ |

जीने क्यूँ बन गए बहाने आप,
अभी कुछ वक्त ही तो हुआ था साथ |

तेरी खुशी का इन्तेज़ार इस कदर क्यूँ,
बस ज़रा मोहब्बत है, नहीं हम दीवाने खास |

Tuesday, March 9, 2010

फलसफ़ा-ए-ज़िंदगी

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ज़िंदगी है एक बहती नदी,
बात ये है कही कभी अनकही,

मिल जाना है एक दिन,
इस बहती नदी को सागर में कहीं |

Monday, March 8, 2010

कहते उसे हैं ज़िंदगी

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जिया जिसके साथ चार पल,
लगा जिसके साथ ये दिल
कहते उसे हैं ज़िंदगी |

कौन जाने मिल पायें,या ना मिल पायें,
ना हो मुलाक़ात उससे,
कहते जिसे हैं जिंदगी |

जिया बस चार पल था मैं, तो क्या हुआ,
कम ही सही पर,
कहते उसे हैं ज़िंदगी |

Sunday, March 7, 2010

कोई गुजारिश नहीं

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की मोहब्बत मैने उसको दिल से,
मानता मैं, उसको ज़िंदगानी हूँ |

दर्द उसके महसूस होते हैं अपने से,
इसलिए हर पल उसको याद करता हूँ |

आज तक हटा नहीं पाया यादों से,
दिल से जुदा नहीं कर पाया हूँ |

Thursday, March 4, 2010

I Still Love You ...

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It seems that,
It was just a yesterday,
when sorrows were at the bay,

All happiness was here,
till the mile, there was no fear.

When I found you,
The real me, I had explored.

Wednesday, March 3, 2010

कशमकश : दूर हूँ या पास

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तुम्हारी दोस्ती से ही, ज़िंदगी में एक सुरूर आया है,
काली शब जैसी जिंदगी में, कैसा ये नूर आया है |

अब मिली है तुम्हारी दोस्ती की छाँव,
वरना वक़्त तो हमेशा आग बरसता आया है|

डर है हमें कि तुम इस जहाँ कि भीड़ में न खो जाओ,
जो एक बार खो गया उसको कौन ढूँढ पाया है |

Monday, March 1, 2010

तेरा प्यार चाहिए !!!

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जीते हम सब यहाँ एक जिंदगी,
सबको यहाँ एक साथ चाहिए|

माना अकेले आये थे, अकेले जायेगें,
पर बीच के वक्त, एक हमदम चाहिए |

सुना है हर सहारे को भी एक सहारा चाहिए,
बहता दरिया हूँ मैं, मुझे भी किनारा चाहिए |