Sunday, March 21, 2010

कौन इश्क समझ पाया

Well again, this is Sandesh Boss's Day.
we were just talking about our creation, I was telling him some of my old poems, them he wrote, following lines on me.
likhte likhe wo yun gazal hi ban gayi ....
Here I am sharing what he said about me.

नूर तुम जलाते रहे जिंदगी को यूँ ही,
ज़र्रे की तज्जली को वो एक शख्श समझ न पाया | [तज्जली = रौशनी]

अब तो ख्वाइश की वो रहे खुश हमेशा
कभी करेंगे हिसाब,की इश्क में क्या खोया.क्या पाया |

अपनी ख़ुशी को बेच दिया साकी के एक इशारे पर,
जाने इस रिंद को अब कौनसा नशा छाया | [रिंद = शराबी]

बहुत आंसा नहीं है इश्क में तड़पना भी,
मौला-ऐ-नूर ये हुनर तूने कहाँ से पाया |

हमने देखी है दिल की तड़पन उन निगाहों में,
वो खाक कहे,पर हमने सिर्फ उनमें प्यार पाया |

अब ना कुछ कहना,हमें आँखों को पढ़ने का हुनर है,
एक यही तो एहसास,तुम्हारे इतने करीब लाया |

0 comments :

Post a Comment