Friday, March 19, 2010

यूँ मोहब्बत हो गयी



जुम्मा जुम्मा चार दिन की दोस्ती गहरी हो गयी,
वो कहते हैं की, हमें उनकी आदत हो गयी |

वो जाएज़ा लेते हैं मोहब्बत का वक़्त से,
ना जाने, वक़्त और मोहब्बत में कब से यारी हो गयी |

इश्क़ में बसता है खुदा, कैसे हो जाएगा वो गुनाह,
ये समझाते हुए हमको, सुबह से शाम हो गयी |

हमने तो सुना था की मोहब्बत है खेल दिलों का,
पर पता नहीं कब से ये उमर दराज़ों की यारी हो गयी |

है उन्हें इंतेज़ार किसी का, मुझे उनकी खुशी का है,
इश्क है ये, पागलपन की कौनसी बात हो गयी |

मानतें है वो हमें बहुत, पर क्या नहीं ये इंतेहाँ है,
जीना उनकी ख़ुशी के लिए, ये कौनसी दीवानगी हो गयी |

कैसे बताएं उन्हें की, गम ही खाए है, गम ही पिये हैं |
हंसी खुशी के नज़ारे लिए, तो यहाँ सदियाँ हो गयी |

हमें बस उनके सुकून, और ख़ुशी की फ़िक्र है,
मेरी ज़िन्दगी से खुशियाँ बहुत पहले ही काफूर हो गयी |

देख लें हम उनके चेहरे पर खुशी का नूर,
मेरी इतनी सी गुज़ारिश उनको नाजायज़ हो गयी |

ना जाने क्यों ये बहार बहुत नागवार गुज़री,
खिली थी जो थोड़ी बहुत कलियाँ , वो खुद में सिमट गयी |

अरमान मेरे सारे निसार तेरी खुशियों पर,
ज़न्नत नसीब है मुझे, ग़र तेरे दिल में मेरी कुछ जगह हो गयी |

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