Thursday, April 21, 2011

नेता जी खुशी सेखाओ जी के बोल वचन

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भ्रष्टाचार की राह पे ईमान से बढ़ता चला गया
हर कफ़नो ताबूत को नीलाम करता चला गया

पहले बेचा मैंने अपने ईमानो रूह को यारों,
बाद में बड़े आराम से मैं देश बेचता चला गया

तुम भेड़ बकरियां हो चर लो जो सूखी घास है
मैं ये करोड़ों का लज़ीज़ चारा खाता चला गया

Monday, April 11, 2011

सच हो या सपना

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वो मुक्त आकाश में पंछी स्वछंद
मेरी मित्र वो मेरे दिल की पसंद

जैसे हो ह्रदय की अविरामी गति
स्वयं राही है, वो स्वयं प्रगति

वो जैसे अधरों पे सजी मुस्कान
अतुल्य है उसका आत्मसम्मान