Wednesday, April 14, 2010

एक सज़ा है ...

मान लूं तुमको अपना, गर तेरी रज़ा है,
तेरे जैसे हमसफ़र के बिन जीना,  एक सज़ा है |

तिशनगी नहीं है ये बड़ी,    [ तिशनगी= प्यास ]
प्यासे रहना दरिया के किनारे , एक सज़ा है

नाराजगी की वजह से नावाकिफ हूँ,
और तेरा यूँ गुमसुम सा,चुप रहना, एक सज़ा है |

चाह कर भी तुमको, अब इज़हार नहीं कर पाते,
किसी को चाह कर, कह नहीं पाना, एक सज़ा है |

जी रहे है फासलों पर, यही अच्छा है ना,
यूँ ज़िन्दगी भर को दूर हो जाना, एक सज़ा है |

मेरी खता क्या थी ये तो था बताना,
बिन बोले, यूँ रुख मोड़ लेना,  एक सज़ा है |

2 comments :

Sandesh Dixit said...

Again a good work ........bt i wanna cu in different emotions too ...Anyways this poem is successful to send da message !!!

Anonymous said...

nice one.... :-)

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