Monday, April 26, 2010

ये इत्तेफाक नहीं ...

माना कि हाथों में हाथ नहीं,
मतलब उसका ये नहीं कि साथ नहीं |

मोहब्बत पर आया है वक्त कुछ ऐसा ही,
पर ऐसा नहीं कि उपरवाला साथ नहीं |

कभी है वक्त, कभी साथ नहीं,
वो कहते हैं, जिंदगी कोई मजाक नहीं |

लड़ता आया हूँ, हर उलट हवा से,
यूँ मान लेना हार, मेरी आदत नहीं |

हर लफ्ज़ जोड़ जोड़, बनायी है दुआ,
कबूल हो हर दुआ, ये ज़रूरी नहीं |

करता हूँ मोहब्बत तुझसे बेपनाह,
करे तू भी मुझसे, ऐसा कोई दस्तूर नहीं |

तेरे साथ की लाख तम्मना है हमें,
होगा कैसे, जब तुम्हे ये मंज़ूर हो नहीं |

तुमको इस खामोशी की ख्वाहिश है तो ठीक है,
पर तुमको भूलने की ये बात, हमें गवारा नहीं |

तेरी खुशी के लिए है ये  सारी कोशिश,
आँखों में तेरी आंसूं हों, ये मुझे मंज़ूर नहीं |

आज तू अलग है मुझसे, तू जुदा सही,
शायद जिंदगी के किसी मोड़ पर, मिलें कभी |

किये होंगे उपरवाले ने कुछ फैसले हमारे लिए,
ये सारी बातें, ऐसे होने वाले इत्तेफाक नहीं |

आज मिल कर, कल बिछुड़ जाएँ हम,
कम से कम इस वास्ते तो, थे हम मिले नहीं |

1 comments :

Shikha said...

माना कि हाथों में हाथ नहीं,
मतलब उसका ये नहीं कि साथ नहीं |

I like it

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