Friday, April 16, 2010

किसने कहा मैं जीता हूँ |

किसने कहा मैं जीता हूँ,
साँसों को इस जिस्म से सीता हूँ,
किसने कहा मैं जीता हूँ |

यादों के जंगले में खोता हूँ,
अरमानों और खवाबों के सहारे चलता हूँ,
किसने कहा मैं जीता हूँ |

ठोकरें बहुत लगी हैं, ज़ख़्मी हैं,
यूँ मरहम की तलाश में फिरता हूँ,
किसने कहा मैं जीता हूँ |

मजबूर हूँ, तुझको मांग भी नहीं सकता,
तेरे बिन जुदाई का हर घूँट पीता हूँ,
किसने कहा मैं जीता हूँ |

आसूँओ को पलकों पर रोकता हूँ,
पर दिल ही दिल में रोता हूँ,
किसने कहा मैं जीता हूँ |

वो बोले कि क्या जिए नहीं अभी तक,
साँसे नहीं आती थी अब तलक,
उन्होंने ने कहा मैं जीता हूँ |

अब जबसे हैं वो जिंदगी में,
अब खुद में खुद को पाता हूँ,
उससे मिलने के बाद, अब मैं जीता हूँ |

1 comments :

Sandesh Dixit said...

ठोकरें बहुत लगी हैं, ज़ख़्मी हैं हम,
यूँ मरहम की तलाश में फिरता हूँ,

jhakhmi hun main ......its better !!!'hum' is not fitting here :P

baki sab bahut achcha hai ...

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