Friday, May 28, 2010

उसकी तनहा रात, क्या यूँ ही चलेगी

कब तक अशआर* की ये कहानी चलेगी,
कब तक यूँ पलकों में वो आंसूं रोकती रहेगी,
उसकी तनहा रात, क्या यूँ ही चलेगी ?

उसके सीने में गम, कब तक पलेगें यूँ ही,
रोती होगी खुद में, जग को हंसाती रहेगी |
उसकी तनहा रात, क्या यूँ ही चलेगी ?

उसकी मुस्कान पे मेरी जान फ़िदा होती है,
मैं रहूँ या ना रहूँ, उससे आशिकी तो रहेगी,
उसकी तनहा रात, क्या यूँ ही चलेगी ?

हंसी लम्हों की बारिश कर दे, अब तो,
जिंदगी उसको कब तक तरसाती रहेगी |
उसकी तनहा रात, क्या यूँ ही चलेगी ?

सोये वो चैन से आगोश-ऐ-मोहब्बत में,
राहों पे वो, फिर ना कभी अकेली चलेगी |
रातें तनहा नहीं तब, होंठों पे हंसी पलेगी |

 अशआर* = शेर का बहुवचन

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