Monday, May 17, 2010

तुझमें खुदा पाया

लोग अब पूछते हैं उससे, तूने मोहब्बत में क्या पाया,
इश्क है ये, नहीं सौदेबाज़ी, मत पूछ क्या पाया |

याद नहीं पड़ता मुझे, कभी वो जिया अपने ख़ातिर,
जीते हुए दूसरों के लिए, उस शक्स ने कभी क्या पाया |

खुदा जाने, क्यों अश्क निकल पड़ते हैं मेरी आँखों से,
नहीं दर्द मिले, हुआ ये जब उसका ख्याल क्या आया |

मेरी मजबूरी कभी जानी होती, सुना होता कभी मुझे,
अज़ीज़ है तू, तू ही मोहब्बत का मतलब सिखा पाया |

यकीं मानो मेरा कभी तो, सच कहता हूँ मैं,
जब जिया हूँ तेरे इश्क में, तुझमें खुदी और खुदा पाया |

1 comments :

sanjeev kumar said...

ज़माने का दस्तूर है तो तेरा इंतज़ार कर लेंगे,
इश्क का तेरे हम इकरार भी कर लेंगे,
जमाना तुझे कोई तोहमत ना दे,
हम दुआ में भी तेरा नाम न लेंगे.

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