Tuesday, May 11, 2010

इश्क हुआ लगता है

तू है मेरा तो, ये जहाँ अपना लगता है |
कहते अशआर, तेरा साया पास लगता है | [अशआर = शेर का बहुवचन]

देखता हूँ जब बादलों में छिपे चाँद को,
वो घूंघट में छिपा तेरा मुखड़ा लगता है |

देखा है मैंने जब भी तुमको हमदम,
तू हमेशा मेरे दिल का टुकड़ा लगता है |

जब कभी मैं सुनता हूँ तेरी हंसी,
जीवन अपना खुशी से सराबोर सा लगता है |

अब समझा हूँ, मैं इश्क का मतलब,
दिल तेरी मोहब्बत में, दीवाना लगता है |

ना जाने तुझे कभी कहा या नहीं,
पर अब नज़रों से, इकरार हुआ लगता है |

सामना ही ना हो पाया तुमसे, क्या करता,
आंसूं पोंछने का वादा, बस वादा लगता है |

तिरी खामोशी, 'नूर' कभी समझा नहीं ,
बस इस इश्क में , ये गुनाह हुआ लगता है |

1 comments :

Anonymous said...

Bahut achchi gazal ....

जब कभी में सुनता हूँ तेरी हंसी,
जीवन अपना खुशी से सराबोर लगता है |

is sher mein kafiya galat hai .......sab jagah "aa lagta hai" aur is sher mein "a lagta hai" ....is badal do to puri gazal flawless ho jayegi !!!


bahut achcha likhne lage ho aajakal :)

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