हर उम्मीद का दामन छोड़े जा रहा हूँ
खुद अपना दिल यूँ तोड़े जा रहा हूँ |
दोस्ती और वफ़ा पे करके भरोसा,
खुद का भरम तोड़े जा रहा हूँ |
रहीम से सुना था मैंने , रिश्ते कच्ची डोर हैं,
खिचीं हुई वो डोरें, अब ढीली छोड़े जा रहा हूँ |
टूट ना जाएँ वो डोर कहीं इसलिए,
जैसी हैं उसी हाल पर छोड़े जा रहा हूँ |
तेरी ही थी गुजारिश तनहा रहने की,
मैं चुपचाप बस तेरे साथ चला जा रहा हूँ |
पूरी नहीं कर सकता ये कहानी मैं अकेले ,
ये कहानी तेरे भरोसे अधूरी छोड़े जा रहा हूँ |
तुम आकर लिख दो उन पर अपना नाम,
ज़िन्दगी के बचे लम्हों को बेनाम छोड़े जा रहा हूँ
पुकार लेना एक बार वापिस तुम मुझे,
तेरे ज़ेहन में बस अपना नाम छोड़े जा रहा हूँ |
6 comments :
कहता था, है उसे भरोसा दोस्ती - वफ़ा पे
वही उम्मीद का दामन छोड़े जा रहा है
जिस कहानी का हर शब्द लिखा है मोहब्बत से
वही कहानी अधूरी छोड़े जा रहा है
-Deepak,
Omg! Awesome! Amazing! Meh! Too MUCH!!!! NICE!!!! :D
kya baat hai...Too good....
Radeef is repeating so many times...I think u can work on it !!! छोड़े जा रहा हूँ ...sayad 80% times hai ....bas yehi kami hai ...agar ise gazal kaho toh each sher shuld be wid different subject....here डोर used in two sher....toh waha bhi sudhar ho sakta hai :p
Baki sab bahut achcha hai ..
too good
Alok,
please do not say that you are not a good writer, you have written an awesome poem, i really appreciate and welcome you to the blog world.
Keep writing good!
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