Tuesday, February 23, 2010

तेरा फैसला और मेरा इंतेज़ार


फ़ैसले पर तेरे शायद तुझको नाज़ होगा,
पर मेरी तरह तेरा दिल भी बेकरार होगा |

ना बहता होंगें आँसू हर घड़ी,
पर तेरा दिल थोड़ा तो मायूस होगा |

दोस्ती ही माँगी थी मैंने ,
पर किसने सोचा तू मुझसे ऐसे जुदा होगा |

सपनों की तो बिसात ही क्या है,
ऐसा हमने जागते भी ना सोचा होगा |

नहीं तकती तेरी आँखें रास्ता मेरा,
शायद तेरे दिल को किसी और का इंतेज़ार होगा |

तू आज चाहे जो समझे, इस बेक़रार दिल को,
मुझे तेरा नहीं, हमेशा तेरी खुशी का इंतेज़ार होगा |

तुम चलो मंजिल की जानिब बेधड़क,
तेरे सहारे को, हर मोड़ मेरा साया खड़ा होगा |

इसलिए करता रहूँगा मैं कहीं चुपचाप इंतेज़ार,
अब तेरी मंज़िल के बाद ही, मेरी ज़िन्दगी का सफ़र तय होगा |

आँखों से बरसते इस सावन को,इस सावन के हर इक बूँद को,
तेरी इन तरसती आँखों को, अब तो उसके आने का इंतेज़ार होगा |

कोई समझे इसे कुछ भी, पागलपन, इश्क़ या कुछ और
पर ये तो तेरा अपनी मोहब्बत को एक नज़राना होगा |

मेरी तो दुआ है हर घड़ी,मंज़िल मिले तुझे तेरी,
कबूल होगी जब ये दुआ, तब ही तुझको मुझ पर यकीन होगा |

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5 comments :

Komal said...

dua karte he, tera intezar jaldi khatm ho.. :)

Vinay said...

तेरा फैसला और मेरा इंतेज़ार

जनाब अक्की जी,

अगर में आपकी इस रचना को, दो शब्दों में संक्षिप्त करूँ तो सिर्फ यही कहूँगा "स्वार्थहीन प्रेम"
चाहे आगाज कुछ भी हो, या फिर अंजाम कुछ भी हो, आपकी इस रचना के किरदार को अगर

किसी चीज़ की चिंता है तो वो है उसका यार.
जो कुछ भी घटित हुआ उससे उस पर को कहर बरपा है, पर उस हालत में भी उसे अपने यार कि

चिंता है.
उसके बेधड़क मुहब्बत करने का अन्दाज़ पसंद आया. आपने जो आंसूओं को सावन कि संज्ञा दी है

मुझे वो भी बहुत पसंद आई.

अति उत्तम रचना है ये, पर जिस चीज़ के लिए मैं आपकी आलोचना करता हूँ, वो है आपकी

ऋणात्मकता, क्यूँ जब आपका किरदार इतनी मोहब्बत करता है तो कोई क्यूँ नाराज़ है उससे.
और जब वो चला गया है जिंदगी से तो उसका इन्तेज़ार क्यूँ, मुझे पता है मैं अपनी ही उपर

लिखी बात का खंडन कर रहा हूँ.
पर मेरे कहने का सिर्फ एक मतलब है कि, जब इतनी मोहब्बत हो, इतना ज़ज्बा हो इश्क का तो

क्यूँ ऋणात्मक है आपके किरदार का मन.
क्या उसे भरोसा नहीं, अपने प्यार पर ...
जुदाई से आपको ही दर्द नहीं है, क्या पता उन्हें आप से ज़्यादा हो, और ये बात कभी वो आप

से कह भी णा पाए हों.
जब इतनी प्यार करो, तो मेरे अनुसार आपको उस पर गर्व होना चाहिए, बहुत कम के पास ये

स्वार्थहीन प्रेम का भाव होता है.
अच्छा लिखते हैं, बस थोड़ी धनात्मकता लाईये ...
कौन जाने उस पर वाले ने आपके लिए क्या सोचा है ...
अल्लाह हाफ़िज़

Anonymous said...

तेरा फैसला और मेरा इंतेज़ार

जनाब अक्की जी,

अगर में आपकी इस रचना को, दो शब्दों में संक्षिप्त करूँ तो सिर्फ यही कहूँगा "स्वार्थहीन प्रेम"
चाहे आगाज कुछ भी हो, या फिर अंजाम कुछ भी हो, आपकी इस रचना के किरदार को अगर

किसी चीज़ की चिंता है तो वो है उसका यार.
जो कुछ भी घटित हुआ उससे उस पर को कहर बरपा है, पर उस हालत में भी उसे अपने यार कि

चिंता है.
उसके बेधड़क मुहब्बत करने का अन्दाज़ पसंद आया. आपने जो आंसूओं को सावन कि संज्ञा दी है

मुझे वो भी बहुत पसंद आई.

अति उत्तम रचना है ये, पर जिस चीज़ के लिए मैं आपकी आलोचना करता हूँ, वो है आपकी

ऋणात्मकता, क्यूँ जब आपका किरदार इतनी मोहब्बत करता है तो कोई क्यूँ नाराज़ है उससे.
और जब वो चला गया है जिंदगी से तो उसका इन्तेज़ार क्यूँ, मुझे पता है मैं अपनी ही उपर

लिखी बात का खंडन कर रहा हूँ.
पर मेरे कहने का सिर्फ एक मतलब है कि, जब इतनी मोहब्बत हो, इतना ज़ज्बा हो इश्क का तो

क्यूँ ऋणात्मक है आपके किरदार का मन.
क्या उसे भरोसा नहीं, अपने प्यार पर ...
जुदाई से आपको ही दर्द नहीं है, क्या पता उन्हें आप से ज़्यादा हो, और ये बात कभी वो आप

से कह भी णा पाए हों.
जब इतनी प्यार करो, तो मेरे अनुसार आपको उस पर गर्व होना चाहिए, बहुत कम के पास ये

स्वार्थहीन प्रेम का भाव होता है.
अच्छा लिखते हैं, बस थोड़ी धनात्मकता लाईये ...
कौन जाने उस पर वाले ने आपके लिए क्या सोचा है ...
अल्लाह हाफ़िज़

Unknown said...

It more sounds a like song rather than a poem.. good job

Sandesh Dixit said...

Khamiya to bahut hia ..lekin Alok jo bhav hai wo mujhe rok dete hai kuch bhi kah dene se ....!!!

Aihsaso ko kagaz par utarna koi tumse seekhe ...


Natmastak !!!

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