Sunday, February 21, 2010

मुझे कुछ समझ लेना


चले गये तुम हमारी ज़िंदगी से यूँ ही,
माना नहीं हमें तुमने कुछ अपना,
अब जिस इंसान को ना मानो अपना कुछ,
उसके लिए क्या खुश होना, क्या गम लेना |

तुम रहो आने वाले कल में खुश,
मेरी तो हमेशा यही दुआ है रब से,
मैं कौन, मेरी हस्ती क्या,
जब से सवाल आए,तो तुम चुप्पी साध लेना |

जब जी रही हो तुम कल में,
मुझे अपना बीता कल समझ लेना,
सूनी सूनी थी जब तेरी गलियाँ,
कभी आई थी जो उनमें, वो बहार समझ लेना |

तुम्हारी हर खुशी के लिए खुश हूँ,
तुम्हारे हर गम के लिए गमगीन,
तुमको माना था अपना हमने इसलिए,
वरना हमें यूँ ही गमगीन ना समझ लेना |

कच्चा पक्का दोस्त समझ लेना,
आके जो चली गयी वो याद समझ लेना,
पाओ ना अगर मेरा निशान कहीं,
दूर कहीं ज़िंदा होऊँगा तेरी याद में,
मुझको तुम, यूँ बर्बाद मत समझ लेना |

2 comments :

vinay said...

अक्की जी,
सबसे पहले में आपकी रचना की अंतिम पंक्तियों के लिए बधाई देना चाहूँगा.
वो दर्शाती हैं कि जिंदगी किसी की मुहताज नहीं, ना ही उनकी जिनसे हम मुहब्बत करते हैं, और ये बात उनको भी समझनी चाहिए

. उन पंक्तियों में आपका आत्मविश्वास और अपने प्यार के लिए लग्न नज़र आती है.

अब मैं आपके ऋणात्मक भाग पर कुताराघात करना कहूँगा, जहाँ एक ओर प्यार विश्वास नज़र आता है वहीँ दूसरी ओर
ऋणात्मकता और दोषारोपण नज़र आता है|

आपकी ये रचना पढ़ के ये नहीं लगा कि ये आपने उसके लिए लिखी है जिससे आप प्यार करते हैं. ऐसा लगता है कि ये आपने उस

इंसान के लिए लिखी है जिसने कभी आपको धोखा दिया है |

आप शुरू से ही देखिये, पहली पंक्ति की शुरुआत ही ऐसे हुई है
"चले गये तुम हमारी ज़िंदगी से यूँ ही,
माना नहीं हमें तुमने कुछ अपना,"

क्यूँ इतना ऋणात्मकता .... मेरी समझ में ये नहीं आया कि आप इंसान को ये बताना चाहते हैं कि आप उनसे कितनी मोहब्बत

करते हैं या दोषारोपण कर रहे हैं कि जो कुछ आपकी जिंदगी में गलत हो रहा है उसके कारण वो हैं.

दोष मढ़ने से आपके प्यार की सात्विकता को भी बहुत आंच पहुँचती है, साथ के साथ उस इंसान को भी पहुँचता है, जो इसकी प्रेरणा

था.

रचना बहुत अच्छी है, कोई शक या सवाल नहीं
पर व्यक्तिगत रूप से मुझे से बिलकुल अच्छी नहीं लगी.

विनय

Unknown said...

I agree with Vinay.. the lines are awesome..
but i don't want my friends to feel bad about a person who has left.. probably they didnt' deserve it. ek gai to doosri aayegi..! eeena nahe to meena nahee to deeka! ghanta rukta nahee bajta rahega :D

awesome poem btw....... :) keep it up

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