Friday, February 26, 2010

क्या ख्याल, कैसे सवाल


दिल में आज ये ख्याल आया,
ना जाने कैसे ये अजब सवाल आया |

भरोसा है हमें तुम्हारी मोहब्बत पे,
पर ना जाने कैसा डर, उभर आया |

क्या होगा अगर, ना लौटे वो,
शायद उन्हें कोई और नज़ारा नज़र आया |

मेरी मोहब्बत फीकी लगी शायद उनको,
कोई और उनको इतना रास आया |

बस ना करो फिकर, ना करो ज़िक्र हमारा,
सोच लेना हमारे बारे, वक़्त था जो बिताया |

पर क्यों उनके ना होने के ख्याल से,
दिल अपने में ही डूबता सा नज़र आया |

जीते जीते क्यों मुझे, अपने पास,
यूँ  फरिश्तों का साया नज़र आया |

अभी तो हुई थी सहर,छुआ था रौशनी ने,
क्यों दिन, शाम का नकाब पहन आया |

मुझ में तलाशो शायद इश्क़ मिल जाये,
हो मेरा ही चेहरा जिसे तेरा दिल, ढूंढता आया |

आ भी जाओ अब ,ख़त्म करो ये इंतेज़ार,
तुमसे ज्यादा कोई अपना नज़र नहीं आया |

खड़े है उसी राह पर, करते तुम्हारा इंतेज़ार,
ये दूर कौन रहगुजर पर, आता नज़र आया |

तेरे आने का सुरूर नहीं तो और क्या है ये,
सहरा थी जिंदगी, तेरे आते ही सावन आया |

2 comments :

Shubhashish Pandey said...

bahoot khoob
achha hai par mere khyal se thoda aur behtar ho sakta tha
kuchh shabd thode khtake jaise
दिल में आज ये ख्याल आया,ना जाने कैसे ये अजब सवाल आया |
भरोसा है हमें तुम्हारी मोहब्बत पर,पर ना जाने कैसा डर, उभर आया |
क्या होगा अगर, ना लौटे वो,शायद उन्हें कोई और नज़ारा नज़र आया |
ke baad
मेरी मोहब्बत फीकी लगी शायद उनको,कोई और उनको इतना रास आया |
is line me raas aaya thik nahi lagta
इसके बजाय कुछ ऐसा किया जा सकता था
'मेरी मोहब्बत फीकी लगी शायद उनको,जाने किसका का उनपे इतना असर आया'
ya may be kuchh aur ...
thodi aage ki lines me bhi ye kram bigda hai

Akki said...

Thanks Subhashish
I will take care of these mistake.

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