Saturday, February 20, 2010

प्यार इश्क और मोहब्बत करता हूँ |


ये आगाज़ है या अंजाम है,
इस ख़याल से लड़ता हूँ |

चहरे पर कुछ नहीं हमारे,
तू परेशाँ है, बस इसलिए परेशाँ दिखता हूँ |

तेरे दर्द को महसूस करता हूँ,
इसलिए तेरी सलामती की फ़रियाद करता हूँ |

तेरी ख़ुशी में शरीक ना कर मुझे,
तेरे गम बांटने की गुजारिश करता हूँ |

क्यूँ भूल जाऊं, दिल से जुदा कर दूं,
तूने ना सही, पर मैं तो मोहब्बत करता हूँ |

क्या हुआ ऐसा क्यों हम दूर हो गए
ये सवाल खुद से हर पल पूछा करता हूँ|

चाहें रहे वो हमसे लाखों दूर,
ख़ुशी के करीब हों, ये दुआ करता हूँ |

इश्क किया है अब क्या सोचे खुद का,
तेरे हर फैसले को मंज़ूर करता हूँ |

दर्द है हमे तेरे साथ ना होने का,
पर इस दर्द से भी मैं मोहब्बत करता हूँ |

ये दर्द बहुत छोटा वाकिफ़ होता है,
जब भी तेरी ख़ुशी से तोला करता हूँ |

खुदा का बंदा ज़रूर हूँ, कोई फ़रिश्ता नहीं,
ना ही उनके जैसा नसीब ले के घूमा करता हूँ |

ले ले के ख़त्म कर रहा हूँ सांसें,
कभी कभी तो इनका भी हिसाब करता हूँ |

उनका जवाब आये या ना आये, गोर पर मेरी इक बार आ जाएँ,
उस खुदा से, बस ये इल्तजा करता हूँ |

तू खुश रहे, है तू जहाँ भी,
मैं बस तुझे प्यार इश्क और मोहब्बत करता हूँ |


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गोर = कब्र

4 comments :

Anonymous said...

तू परेशाँ है, बस इसलिए परेशाँ दिखता हूँ |

ab na kehna ki tumhe likhna nahi aata ....:P

lovely

Akki said...

Bada disguised compliment hai boss, Gahari gahari baatein bol jaate ho

Vinay said...

जनाब अक्की जी,
बहुत सही अंदाज़ में बयां किया है आपने किसी के हाले दिल को.
बस एक शिकायत है, जिस किसी का भी ये किरदार है, उसे अपने से ज्यादा अपने हमदम से प्यार

है. जो अपनी जगह बिलकुल सही है पर, किसी के इश्क में खुद को फना कर देना. ये तो सही

नहीं.
आपके किरदार को उसके हमदम से दूर होने का गम है, पर इतना गम, दूसरा इंसान डर ही जाए.
एक आम आदमी की यही कहानी होती है, आँखों में पानी और होंठों पे दुआ होती है |

और फिर ये क्या "उनका जवाब आये या ना आये, गोर पर मेरी इक बार आ जाएँ,"

मतलब इतना प्यार भी और हमदम से पहले गोर में समाने की बातें, कभी सोच के देखो यार,
आपका किरदार इतना प्यार करता है किसी से, उसको पाए बिना इस दुनिया से रुकसत, उफ़ इससे

बड़ी ज्यादती क्या होगी किसी के साथ.
आप कृपया भावों का ख़याल रखें, लिखते हुए इतना भी न डूब जाया कीजिये कि ये भूल जाएँ, क्या

संभव है और क्या असंभव.

आपके कलम में जान है, लेकिन थोड़ी दिशा ठीक नहीं है,
अगर इतना प्यार है तो इतना गम क्यों, आपके किरदार का प्यार तो उसको खुश रखना चाहिए.

मुझे जो लगा में कहा, अगर आप को ये आपतिजनक लेगे तो आप ये टिप्पणी को रद्द कर सकते हैं.

Unknown said...

Akki bhai.. itna senti ho gaya tu to..!

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