माना ऐ ज़िन्दगी तू जीने देती है,
पर क्यूँ इतनी बेरहम होती है |
देती है खुशियाँ मानता हूँ,
मगर उससे ज्यादा दर्द क्यूँ देती है |
एक कदम चल भी नहीं पाते,
क्यूँ चलने के सहारे छीन लेती है |
दिया तो तूने कभी कुछ भी नहीं,
पर हाँ, हंसने के बहाने लूट ज़रूर लेती है |
क्या बस चले तुझ पे ज़िन्दगी, 'नूर' का,
दिल भी देती है, और खुद दिल तोड़ भी देती है |
पर क्यूँ इतनी बेरहम होती है |
देती है खुशियाँ मानता हूँ,
मगर उससे ज्यादा दर्द क्यूँ देती है |
एक कदम चल भी नहीं पाते,
क्यूँ चलने के सहारे छीन लेती है |
दिया तो तूने कभी कुछ भी नहीं,
पर हाँ, हंसने के बहाने लूट ज़रूर लेती है |
क्या बस चले तुझ पे ज़िन्दगी, 'नूर' का,
दिल भी देती है, और खुद दिल तोड़ भी देती है |
1 comments :
इसी का नाम तो ज़िन्दगी है दोस्त :)
Post a Comment