Saturday, March 26, 2011

जब से उनसे मोहब्बत है


दिलबर करते नहीं ऐतबार मेरा पर तहे दिल रहते हैं
वो हैं राहों से कोसों दूर पर हमसफ़र का हक रखते हैं

दिले नादाँ का भी क्या कसूर जो फ़िदा हुआ उनपे
हमनफस वो चेहरे पर कुछ फरिश्तों जैसा नूर रखते हैं

हमज़मीं से हम बस साथ है जीते हैं इस जहाँ में,
मैंने कब और कौनसा वो मेरे वादों पे एतिकाद करते हैं

होगा ये शब भर का चाँद दुनिया के लिए बहुत दूर
हम तो रोज की तन्हाई में बस उससे ही बात करते हैं

किया जिसने वो ही जाने कि क्या ताकत है ये इश्क
हम आशिक दिल में ऐसा यकीन ऐसा होंसला रखते हैं

अब तो मामूल है पलकों का नमी को यूँ सहेज़ना
आयें हैं वो हमें याद ज़ियादा आँखों से सावन बरसते हैं

मर मिटे हैं हम उस जानशीं पर अब हम क्या करें
हद है पागलपन की, बातें ये लोग हमारे बारे करते हैं

ओ जानशीं अब तेरी बातें हर वक्त हर पल गुफ्तगू तेरी
सब कहें क्यूँ दीवाने हो, आओ कुछ होशे दवा करते हैं

मुब्तादा-ऐ-इश्क* है ना दुआ और ना ही कोई दवा
हम पे बस उल्फत के सितारे अब कुछ यूँ असर करते हैं

कहने वाले कहते हैं कि लो अंजाम से मिले हो तुम
ये है आगाज़-ऐ-मोहब्बत* और हम ये भरोसा रखते हैं

जाने क्या समझा उसने मेरी उल्फत को जाने क्या सोचा
हम तो इसे इबादत समझ इसी से दिल आशना करते हैं

(मुब्तादा-ऐ-इश्क = Principle of love)
(आगाज़-ऐ-मोहब्बत= beginning of love)

1 comments :

Akki said...
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