Wednesday, March 2, 2011

कशमकश ऐ दीवानगी


दीवानों सा गली गली उसका नाम यूँ पुकारता रहा
बेवज़ह ही मैं उसकी बदनामी का सबब बनता रहा

कहता रहा कि मोहब्बत है मुझे तुमसे बेइन्तेहाँ,
पर खुद ही क्यों अपने यार को रुसवा करता रहा

बस यूँ बिन सोचे जाने इकरारे इश्क किया मैंने,
कभी नहीं पूछा, क्यूँ तेरा दिल ऐसे जलता रहा

हो रहा है मुझे अब अपनी खताओं का एहसास,
किसी कोने में छुपकर कल रात भर मैं रोता रहा

अब कहने कि ना हिम्मत है और ना वक़्त बचा,
जो एहसास दिल में था, बस गुमनाम सोता रहा

मैं क्यूँ रहा अकेला तनहा महफ़िल से दूर तलक,
जब ये ज़माना सरे महफ़िल कहकहे लगाता रहा

क्यूँ दोष दूं तुझको, कैसे कोई तोहमत लगाऊं,
बस किये के नतीजे थे, जो मेरे साथ होता रहा

ना कोई शिकवा ना शिकायत है तुमसे मुझे
खता नहीं तेरी, तू तो अपनी ही राहें चलता रहा

इश्क के शोलों को दबाता रहा सीने में इस क़दर,
दिल ख़ाक हुआ, तेरा नाम रूह रोशन करता रहा

अब हर शाम मै में डूबी मेरी, आँखें बोझिल हैं
डूबा हुआ मैं शाम के जाने का इंतज़ार करता रहा

इतना इश्क क्यूँ है तुझसे, ये जवाब ना मिला
तेरा नाम दिल पे लिखता रहा, और मिटाता रहा

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