Friday, February 25, 2011

सुलझा अनसुलझा सवाल

सवाल हूँ कोई अनसुलझा सा, जवाब ढूँढता हूँ
या जवाब शायद ऐसा जो खुद से सवाल करता हूँ

कभी बहुत ख़ामोशी से मैं खुद से भी पूछता हूँ
क्यूँ उसे ऐसे बेपरवाह बेपनाह मोहब्बत करता हूँ

सवाल है कि जो मैं करता हूँ वो क्यूँ करता हूँ,
क्या ये मैं सही करता हूँ या फिर गलत करता हूँ

खो गए जाने किस राह में तुम बस ये सोचता हूँ
तुमको हर पल खोजता हूँ, हर लम्हा तलाशता हूँ

कोई भी कोशिश ना करने की, कोशिश करता हूँ
उल्फत से भीगे लफ्जों से यादें और ताजा करता हूँ

उसका वो कहना क्यूँ दीवाने हो रहे हो 'नूर'
अनसुना कर शायद बेमंजिल राहों पे चला करता हूँ

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