Tuesday, June 29, 2010

दिल तेरी चाहत कर रहा है

गुजरते हुए वक्त भी, खुद बदल रहा है,
मुझे में तेरा प्यार कुछ और संवर रहा है |

ये जानते हो तुम भी, ना चाहा था मैंने
पर ख़ामोश कब से ये दिल जल रहा है |

रहा तू सदा बेखबर क्यूँ मुझसे, पूछता
तेरे ख़ातिर दिल क्या ख़याल बुन रहा है |

वस्ले वक्त अब सामने, खत्म है इन्तेज़ार,
दिल अब मिलन का इंतज़ार कर रहा है |

हिज्र में गुजरा वक्त, इबादत का था
अब तुझ में खुदा का अक्स दिख रहा है |

जो लफ्ज़ तूने कभी बोले थे मुझ से,
उनसे ये दिल आज तक भी पिघल रहा है |

तेरे साथ हूँ तो हर अंजाम हसीं होगा,
ये दिल तेरे साथ की, चाहत कर रहा है |

'नूर' उसकी मोहब्बत का ही असर तो है,
अँधेरी राहों को अब ये इश्क रोशन कर रहा है |

2 comments :

Komal said...

राहें हो रोशन और हर मंजिल हो मुकम्मल तेरी,
आज फिर दिल ये दुआ करता हैं

sanjeev kumar said...

न जाने किस-किस के तरननुम मे दफन होती है जिनदगी.
मै तो कहता हु कि कफन होती है जिनदगी.

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