Wednesday, June 23, 2010

तेरा शुक्रिया कर रहा होता


ऐ दोस्त अगर तेरी दोस्ती का सहारा ना होता,
गम की ना जाने किन गलियों में भटक रहा होता |

क्यूँ वक्त ने बना दिए हैं फासले हमारे बीच,
अगर होता बस में मेरे, फासले कम कर रहा होता |

टूटा टूटा, बिखरा बिखरा था यहीं कहीं,
तूने समेटा प्यार से, वरना मैं बिखरा ही रहा होता |

आज हूँ यहाँ मैं, जी रहा हूँ तेरी यादों के सहारे,
वरना जाने दुःख के किन दायरों में घूम रहा होता |

देख क्या वक्त आया, अल्फाज़ नहीं है मेरे पास,
लफ्ज़ होते गर तेरी दोस्ती का शुक्रिया कर रहा होता|

1 comments :

Anonymous said...

well done...
man , i never knew that u write such fantastic poems.
keep going .....

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