Monday, December 13, 2010

तेरा मेरा कल, तेरा मेरा आज


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तुझसे अलग मैं, मुझसे तू थोड़ा दूर ज़रा था
खता ना तेरी ना मेरी, वक्त ही अलग सा था

था इश्क तेरे दिल में, और मेरे दिल में भी,
छाया था जो हम पर वो अब्र बदगुमानी का था

कड़कती बिजलियाँ, कहीं थी तेज आंधियाँ,
तेजाबी बारिश में कहीं कहीं दिल भी जला था

जलता भी ना तो और क्या करता ये दिल,
उसने कितनी आसानी से हमें बेवफ़ा कहा था

अब आये हो हाल पूछने मेरा, तब कहाँ थे,
ज़माने ने दिल को दिल नहीं खेल समझा था

जो होना था, वक्त के साथ होते हो ही गया,
टूटे दिल के साथ आये करीब एक तो होना था

यकीन नहीं है हम पे उसमें तेरा क्या कसूर,
तदबीरे खुदा, वक्त रहते तेरे पास ना भेजा था

कोशिश करते हुए अरसा हुआ, असर हो जाए,
जल जाए चिरागे इश्क, जो सालों से बुझा था




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