Saturday, December 25, 2010

देना ही है अगर

मेरे सामने हमेशा रास्ता-ऐ-उल्फत रहा
शूल काँटें मेरी आहें अब और ना सता

गर जिल्लत ही देनी है मौला तो दे दे
रहम कर इज्जत के अलफ़ाज़ ना सुना

मौत ही बक्शी है जो तूने दर्दनाक तो
बहारे जिंदगी की झूठी राहें ना दिखा

दुश्मनी ही आनी जो मेरे हिस्से ठीक है
पर दोस्तों से खंजर के वार ना खिला

जल जल के ज़ज्बात कोयला बन चुके,
कोयले को यूँ सुलगा कर राख ना बना

नहीं उसको इश्क मुझसे कोई बात नहीं,
इस हिज्र को उल्फत का सिला ना बता

महरूम रखना है यार से तो बेशक रख,
मेरा कह उसे यूँ गैर-दामन में ना गिरा

मौसमे गम में अभी रातें और काली होंगीं,
गाहे बगाहे ऐ खुदा तू इसे गहरा ना बना

देख कब से चल रही हूँ स्याह राहों पे,
ग़मों के अँधेरें हैं मिले बस वो नूर ना मिला

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