हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, सबको इसने अपने में समाया
मैंने सोचा कि सोचें इतने सालों में हमने क्या खोया पाया
कुछ भूख से रोते बिलखते बच्चों को भूखे पेट सोता पाया
शहीद जवानों के मौत के सदमे से माँ को पत्थर हुआ पाया
कहीं टीवी पे बेगैरत लोगों ने स्वयंवर का ढोंग रचाया
कभी आतंकवाद से धरती के स्वर्ग को धूं धूं जलाता पाया
चवन्नी छाप नेताओं ने लोगों को मज़हब खातिर लड़ाया
देखा मैंने जब गणतंत्र बने भारत को, भारतीय की नज़र से
हमेशा इस सोने की चिड़िया को स्वर्ण पंख खोते हुए पाया
आप सही मैं सही, गलत कौन,जीतनी ढपली उतने राग हैं
पचासों साल हमने सिर्फ और सिर्फ गणतंत्र दिवस मनाया
Is republic day, really happy ?
Ask yourself.. I m asking too
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