कभी मै के नशे का खुमार उतरा भी होता
लाख कोशिश की पर मैं उसको भूला भी होता
दूर रह कर जिस्म में साँसें ले रहा उसका प्यार
मैंने कभी उसको यादों से अलग किया भी होता
जिस पर निसार किया मैंने ये दिलो जाँ,
कभी तो उसकी जुबां से इकरार सुना भी होता
हमेशा क्यूँ वो इनकार पर यूँ अड़ा रहा,
मैंने उसके दिल के ज़ज्बात को समझा भी होता
वक्त बदलता रहा मौसम आते और जाते रहे,
मैं खड़ा उसी मोड़ पर उसने पीछे देखा भी होता
ऐसी क्या चाहत थी, जो मैंने कुछ ना सोचा
दीवाना ना होता कुछ अपने बारे सोचा भी होता
बस करो 'नूर', ताउम्र क्या ये शिकवे रहेगें,
वस्ले यार होता जो खुदा मेहरबाँ रहा भी होता
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