अब गैर सी हर पनाहों से गुजर जाने को दिल करे,
मैं हमराही नहीं, राहों से दूर निकल जाने को दिल करे
किसी के सहारे की ना आस ना आरजू है कोई ,
आसरे की हर ज़रुरत से अलग हो जाने को दिल करे
ख़ाक हो चुके गुलशने इश्क उस मगरूर खिज़ा में,
क्या ऐतबार, बहारों भी से परे चले जाने को दिल करे
दूर है तू मुझसे इतना, जितना वो चाँद जमीन से,
नामुनकिन ही सही, फिर भी तुझे पाने को दिल करे
बेचैन है मेरी ज़िन्दगी, प्यासी है तेरी मोहब्बत की,
तेरे प्यार की बारिश में, अब भीग जाने को दिल करे
तू कभी समझा ही नहीं, मेरे दिल की बातों को,
कभी फुर्सत से, तुझे सारी बातें समझाने को दिल करे
तेरे से तो मैं इज़हार भी नहीं कर सकता इश्क का,
मुश्किल है, पर इनकार के बहाने बनाने को दिल करे
फुरकत के लम्हे मारते हैं हर पल मुझे बेदर्दी से,
एक तेरी जुस्तज़ू से, हर बार जी जाने को दिल करे
0 comments :
Post a Comment