Monday, May 23, 2011

मुझे आशिक बन जाने दो


आखरी बार ही सही मुझे हार जाने दो
मर के जी जाने दो जीकर मर जाने दो

सिला-ऐ-इश्क हमें ही है चुकाना जानशीं
ना सोचो कुछ मुझे मुफलिस हो जाने दो

शायद ये अब्रे जुल्फ कभी ना बरसेगा 
पर उस आरज़ू में रूह तर कर जाने दो

यूँ अदावत हारती ही आयी मोहब्बत से
कभी इश्क को इश्क से शिकस्त खाने दो

फ़कत बहुत फक्र था उसे दोस्ती-वफ़ा पर
ज़रा रुको तो दिल का यकीन टूट जाने दो

तुम इक ही तो थी शमा मेरी जानशीं
पर तेरी जानिब आये कैसे ये परवाने दो

तिरी उल्फत बहुत बासुकुन है दीवानी
कुछ पल सही तेरा आशिक बन जाने दो

गिला नहीं मिल ना पाने जल जाने का
'नूर' जल कर ये जहाँ रोशन कर जाने दो

0 comments :

Post a Comment