रोता हूँ मैं बहुत, कभी मैं हंस लेता हूँ
वज़हे-खुशी खातिर तुझको याद कर लेता हूँ
बहुत दिल करता है तो खत लिख लेता हूँ
उन कागजों पर दिल का पूरा हाल,
उसमें तेरे बारे मेरे बारे कुछ बयाँ करता हूँ
कुछ ज़ज्बा और कुछ ज़ज्बात लिख लेता हूँ
जानता हूँ जो सच है, हकीक़ते जिस्त है,
कि तुम तक नहीं पहुँचेगे ये खत कभी,
यही सोच उन्हें वापस किताबों में रख लेता हूँ
ज़माने की झूठी रस्मों से मैं लड़ लेता हूँ,
तेरी मीठी और प्यारी बातों से मुस्कुरा लेता हूँ,
जीना है चंद लम्हे वो मोहब्बत में जी लेता हूँ
आज वो किताब मेरे हाथों से छूट के गिरी,
बिखरे सारे खतों को समेटा कुछ इस तरह,
जैसे मैं ज़ेहन में तेरी यादों को समेट लेता हूँ
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