ऐ दोस्त अगर तेरी दोस्ती का सहारा ना होता,
गम की ना जाने किन गलियों में भटक रहा होता |
क्यूँ वक्त ने बना दिए हैं फासले हमारे बीच,
अगर होता बस में मेरे, फासले कम कर रहा होता |
टूटा टूटा, बिखरा बिखरा था यहीं कहीं,
तूने समेटा प्यार से, वरना मैं बिखरा ही रहा होता |
आज हूँ यहाँ मैं, जी रहा हूँ तेरी यादों के सहारे,
वरना जाने दुःख के किन दायरों में घूम रहा होता |
देख क्या वक्त आया, अल्फाज़ नहीं है मेरे पास,
लफ्ज़ होते गर तेरी दोस्ती का शुक्रिया कर रहा होता|
1 comments :
well done...
man , i never knew that u write such fantastic poems.
keep going .....
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