अब्र के साये में रह मैं बूंदों को तरसता हूँ
बेखबर दरिया पे बरसते बादल को देखता हूँ
खवाबों में उस हसीन के खवाब देखता हूँ ,
गुजरते पलों से दिली उम्मीदों को बुनता हूँ
वक्त गुजर चुका हो चाहे राहों से बहुत दूर,
मैं अब भी तेरी उन्हीं गलियों से गुजरता हूँ
माना दूर हैं हम, ये कोई बड़ी बात नहीं,
थोड़ा सा तुम चलो, थोड़ा यहाँ मैं चलता हूँ
यकीन है मुझको भी इश्क पाओगी तुम,
साँसों पर नहीं अब इन पलों पर जीता हूँ
क्यों खौफ़ है तुझे ख़याल-ऐ-मंजिल से
तेरे साथ को हर मोड़ पे मैं खड़ा होता हूँ
फिकराना कैसा जानशीं, अकेली कहाँ हो,
मैं हमेशा तुमको मोहब्बत से घेरे रहता हूँ
फ़िराक है चाहे मेरी जिंदगानी यहाँ पर
बारहा बस तेरी सलामती की दुआ करता हूँ
Saturday, July 9, 2011
कुछ ख्वाब बुनता हूँ
Written by Akki at 11:45 PM
Labels: distant love , kavita , light-mood , loneliness , love , platonic love , Separation , stubborn , well wishes , words2you
3 comments :
जन्माष्टमी की शुभ कामनाएँ।
कल 23/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
ख्वाबो के साथ शब्दों को भी बखूबी बुना हैं आपने....
खूबसूरत रचना
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