वो मुक्त आकाश में पंछी स्वछंद
मेरी मित्र वो मेरे दिल की पसंद
जैसे हो ह्रदय की अविरामी गति
स्वयं राही है, वो स्वयं प्रगति
वो जैसे अधरों पे सजी मुस्कान
अतुल्य है उसका आत्मसम्मान
प्रियजनों की आँखों की चमक
देह उसकी जैसे हीरों की दमक
चाँद की चाँदनी सी शीतल वो
जीवन का स्पंदन, हलचल वो
नहीं है ये कवि की कोई कल्पना
ना मेरी जागती आँखों का सपना
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