परदेस में बैठ कर, मेरा देश और अपना लगता है,
कभी सपनों को पूरा करना भी, एक सपना लगता है |
आये इतनी दूर यहाँ, कागज के टुकड़ों के खातिर,
खुद का जीवन, अब शाख से टूटा एक पत्ता लगता है |
खुद की आस, खुद की प्यास ना जाने कहाँ खो गयी,
चंद सिक्कों की भूख का असर दिल पे छाया लगता है |