दिलबर करते नहीं ऐतबार मेरा पर तहे दिल रहते हैं
वो हैं राहों से कोसों दूर पर हमसफ़र का हक रखते हैं
दिले नादाँ का भी क्या कसूर जो फ़िदा हुआ उनपे
हमनफस वो चेहरे पर कुछ फरिश्तों जैसा नूर रखते हैं
हमज़मीं से हम बस साथ है जीते हैं इस जहाँ में,
मैंने कब और कौनसा वो मेरे वादों पे एतिकाद करते हैं
होगा ये शब भर का चाँद दुनिया के लिए बहुत दूर
हम तो रोज की तन्हाई में बस उससे ही बात करते हैं