कभी कुछ तो कह पाऊँ खामोश हूँ कब से,
चुरा ले जाती हो क्यों मेरी नींद यूँ मुझ से
प्यार है बेइन्तेहाँ ये माना है मैंने,
हिम्मत ना जुटा पाया कि कह दूँ तुझ से
कोई ना जाने, हाले दिल जानूँ बस मैं,
चुप हूँ जब से प्यार का एहसास यूँ तुझ से
Written by
Akki
at
11:45 PM
Labels: courage , distant love , kavita , pain , platonic love , poem
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Akki
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11:45 PM
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